क्या आप #पाश को जानते हैं ! हाँ “अवतार सिंह संधू” इनका पूरा नाम यही है। इनकी हर लिखी पक्ति आज भी शूलगता हुआ शोला है। आज दुनियाँ जैसे भी उन्हे याद रखे पर उनकी रचित हर कविता मे सच्चाई की एक भीषण गंध है जोआपके अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है।
आज पाश को जिस भी पक्ष से आप देख लें पर उनकी सारगर्भिता आप झूठला नहीं सकते। उनकी बेहद तल्ख और धारदार पंक्तियाँ पिघले लोहे की भांति आपके हर शय को चीरती हुयी आपके अंतर्मन में लहूलुहान हो चुके हर अनुभति को शब्दों दे देती है। शायद यही कारण है की आज भी उनकी कविता उतनी हीं रेलवन्ट मालूम पड़ती है जितनी कभी वो अपने दौर मे थी।
पाश हमे अक्सर आगाह करते रहे हैं साथ मे प्रेरित भी करते हैं कि आप जिस भी स्थिति मे हों उसे बेहतर करने की जद्दोजहद करते राहनी चाहिए। उनकी रचित एक बेहद लोकप्रिय कविता “मेहनत की लूट” चाहे जिस भी परिस्थिति मे लिखी गई हो पर आज भी उतना ही प्रासांगिक है । हर शब्द वेदना और विद्रोह की भीषण गंध लिए आपको प्रेरित करती है और बेहतर सपने देखने की हिम्मत देती है।
याद रहे, बेहतर कल का निर्माण आज के बेहतर सपनों से होती है और बेहतर आज के लिए अथक परिश्रम की जरूरत है। जरूरी नहीं कि हमारे सपने राजनीति के तराजू पे तौले जाएं और लेफ्ट और राइट विंग के चक्कर मे यूं हीं दम तोड़ दे। हम अक्सर समाज मे बदलाव के लिए आवाज उठाने की खोखली कोशिश करते रहते हैं पर शायद खूद के खोंखलेपन के वजह से किसी दूसरों के अजेंडा का एक मोहरा बन कर रह जाते हैं।
हमारी सफलता-असफलता के लिए हमसे ज्यादा कोई और जिम्मेदार नहीं हो सकता। हमने सपने देखना छोड़ दिया है। जो बहुमूल्य प्रयास पहले हमारे खूबसूरत कल के लिए होना चाहिए वो न जाने क्यों बिखर सा गया है … हमारे सपने मर से गए है और ये सबसे खतरनाक है
मेहनत की लूट कविता अपनी श्याह पक्ष के साथ भी आज की प्रासंगिकता में उतनी ही सार्थक है.
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना, बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना, बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना, बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना, बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक्त निकाल लेना, बुरा तो है
पर,सबसे खतरनाक नहीं होता
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नजर में रुकी होती है।
सबसे खतरनाक वो आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दोहराव के उलटफेर में खो जाती है।
सबसे खतरनाक वो चांद होता है
जो हर क़त्ल, हर कांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है।
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
आपके कानों तक पहुंचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है।
सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़
हमेशा के अंधेरे बंद दरवाजों-चौखटों पर चिपक जाते हैं।
सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए।
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती।।
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना ।
अवतार सिंह संधू “पाश”