क्या मिल गया जो ठहर गए!
क्या पा लिया जो बिफर गए।
तुम किस डगर पर चल दिए,
तुम किस नगर में बहल गए।
किसी बात का क्या तुम्हे गम नही।
या जीत का तुम्हे अवचेतन नही।।
तुम सोचते हो क्या हो जाएगा!
जो नसीब में है मिल जाएगा।
अंगीकार तुम्हे इस बात का हो,
तुम सिर्फ शुन्य पर सवार हो।
अपनो बहानों भरे तिलिस्म मे,
आत्ममुग्धता के शिकार हो।
सोचो छोड़कर सब तुम जाओगे,
किस बात पर आह्लाद पाओगे।
जो नहीं मिला, तो नहीं मिला
जो नहीं किया, तो नहीं किया
तुझे किस कमी की शिकायत है?
सारी जकड़नो को छोड़ कर।
सब रिवायतों को तोड़ कर,
जो पल बचा, सब जोड़ कर,
प्रतिज्ञा तुम अब कठोर कर!
प्रचंड धीर वीर अब बनेगा तुम।
न थकेगा तुम, अब न रुकेगा तुम।
कमजोरियों को तज़ कर सब,
श्रम की पराकाष्ठा करेगा तुम।
– शशि कुमार ‘आँसू’
