मैं कैसे तुमको याद करूँ – शशि कुमार आँसू

मैं कैसे तुमको याद करूँ!
मैं कैसे तुमको याद करूँ!

किस बात का फरियाद करूं।
मैं देखूं तुमको या बात करूँ।

मैं कैसे तुमको याद करूँ।
मैं कैसे तुमको याद करूँ।।

रोयां रोयां मेरा खील जाता है।
तेरी बातेँ जब याद आती है।।

मैं तन्हा सूरज बस तकता था,
एक रोज़ अचानक तू आयी!

कितने बसंत लो बीत गए,
ना तुम भूली न हम भूले।।

जब मिले थे कितने कच्चे थे,
हाँ हाँ हम शायद तब बच्चे थे।।

पल कैसा था क्या बात करूँ,
मैं कैसे तुमको याद करूँ!

तुम कैसी थी क्या याद करूं,
दिल करता था तूझे प्यार करूं।

तेरी आँखे आज भी वैसी है,
खट्टी कच्ची कैरी की जैसी है।

जब तब तुम काज़ल करती थी,
तब मन-तन घायल हो जाता था।

इतराती हुई, झनकाती हुई,
तेरी पायल की झंकार सुनूं!

मैं कैसे तुमको याद करूँ!
मैं कैसे तुमको याद करूँ!

तुम कैसी थी क्या याद करूं,
किस पल का अहसास धरूँ!

जब तब तुम बाल में बूंदों को,
बल खाके तुम झटकाती थी!

सच कहता हूँ मर मीट जाता था,
जब मुड़कर तुम मुस्काती थी।

जब देख मुझे मुस्काती थी,
कभी गाती थी, शर्माती थी।

जब धीरे से तेरे सुर्ख होठों से,
‘आँसू’ कहके मुझे बुलाती थी।

मैं कैसे तुमको याद करूँ!
मैं कैसे तुमको याद करूँ!

पल जब भी वो मैं याद करूं
मन फिर पागल हो जाता है।

दिल करता था तूझे प्यार करूं।
बस प्यार करूं बस प्यार करूं।

मैं कैसे तुमको याद करूँ!
मैं कैसे तुमको याद करूँ!

Simpi Shashi Singh

काव्य मञ्जरी की काव्य गोष्ठी में पल-पल बरसे हर रस, समसामयिक विषयों पर चिंतन-मंथन करते रहे कलमवीर

रविवार 12-06-2022 को साहित्यिक सांस्कृतिक कला मंच आँती के तत्वाधान में काव्य-मञ्जरी 0.2 ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमें अध्यक्ष Gautam Kumar सरगम भैया के अध्यक्षता में वरिष्ठ कवि एवं जाने-माने पत्रकार Rajesh Manjhwekar भैया, कवि डॉ शैलेन्द्र कुमार प्रसून जी, कवि शशि कुमार आँसू भैया, कवि एवं शिक्षक नितेश कपूर जी, कवि-गायक Santosh Maharaj जी, युवा कवि Amit Kumar Amit भाई एवं मैंने Prabhakar India काव्य पाठ किया।
राजेश मंझवेकर भैया ने अंत में बहुत सुंदर समीक्षा भी किये और कलम को और प्रखर बनाने हेतू सुंदर सुझाव भी दिए।


आप सभी ने मंच के लिए समय दिया, उसके लिए हम बहुत आभार व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि #साहित्य सेवा निरन्तर होता रहे।


बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रभाकर प्रभू

सोनवर्षा वाणी समाचार पत्र
सन्मार्ग समाचार पत्र
नव बिहार टाइम्स

#हिंदुस्तान
#दस्तक_प्रभात

तुझे किस कमी की शिकायत है? – शशि कुमार आँसू

क्या मिल गया जो ठहर गए!
क्या पा लिया जो बिफर गए।

तुम किस डगर पर चल दिए,
तुम किस नगर में बहल गए।

किसी बात का क्या तुम्हे गम नही।
या जीत का तुम्हे अवचेतन नही।।

तुम सोचते हो क्या हो जाएगा!
जो नसीब में है मिल जाएगा।

अंगीकार तुम्हे इस बात का हो,
तुम सिर्फ शुन्य पर सवार हो।

अपनो बहानों भरे तिलिस्म मे,
आत्ममुग्धता के शिकार हो।

सोचो छोड़कर सब तुम जाओगे,
किस बात पर आह्लाद पाओगे।

जो नहीं मिला, तो नहीं मिला
जो नहीं किया, तो नहीं किया

तुझे किस कमी की शिकायत है?

सारी जकड़नो को छोड़ कर।
सब रिवायतों को  तोड़ कर,

जो पल बचा, सब जोड़ कर,
प्रतिज्ञा तुम अब कठोर कर!

प्रचंड धीर वीर अब बनेगा तुम।
न थकेगा तुम, अब न रुकेगा तुम।

कमजोरियों को तज़ कर सब,
श्रम की पराकाष्ठा करेगा तुम।

– शशि कुमार ‘आँसू’


तुझे किस कमी की शिकायत है?

मां तेरी दुआ है साथ मैं संवर जाउंगा… काव्य मंजरी ने जोड़ा शब्द शिल्पियों को, बिखरे अनेक रंग

प्रभाकर प्रभु जी के संचालन में एतवार को आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन बड़ा ही मनमोहक और शानदार रहा जिसमें सभी कलमकारों ने कार्यक्रम के पहले दिन ही अपने काव्य अभिव्यक्त कर अपना विशेष छाप छोड़ी।


विशेष रूप से राजेश मंझवेकर सर, आंशु भाई साहब और रेजा तस्लीम भाई ने मां की रचना से कार्यक्रम को माँ मय कर दिया।


खुशी जी का पुत्र प्रेम की रचना, प्रभाकर प्रभु भाई की तरन्नुम में ग़ज़लें, नांदा जी की ग़ज़लें,सागर
जी की छंदमुक्त कविताएं सब सराहनीय थी। कविता गीत के अलावे भी जो बातें राजेश मंझवेकर जी, आशु भाई,प्रभु भाई ने जो कही वो अत्यंत आवश्यक, संवेदनशील, कर्ण प्रिय और साहित्य जगत में आने
के लिए ज़रूरी भी था। आपलोगों ने मेरे तारीफ में बड़े बड़े शब्दों का जो उच्चारण किया उसके लिए आभार, हालांकि मैं अभी उस काबिल नहीं हुआ हूँ बस आपलोग ये साहित्य और सांस्कृतिक कारवां को प्यार दें साथ दें। आज के कार्यक्रम को सुंदर बनाने के लिए आपलोगों को बहुत बहुत धन्यवाद व स्नेह।
– गौतम कुमार (शिक्षक, कवि, मगही शिक्षाविद, ग्राम आती, नवादा)

शब्दशिल्पियों ने बिखरे अनेक रंग कला व सांस्कृतिक मंच आंती के प्रयास से हुआ आयोजन

दस्तक प्रभात प्रतिनिधि

~Rajesh Manjhwekar JI

नवादा | काव्य मंजरी के कवि सम्मेलन में मां के जिक्र से सबकी आंखें नम हो गयीं तो आज के माहौल पर काव्य प्रहार होने पर सभी संजीदा हो गए। शब्दों से जोश भरा गया और जमाने की दस्तूरबयानी भी हुई। इस ऑनलाइन प्रयास के क्रम में कवि सम्मेलन के संयोजक सह संचालक राष्ट्रीय कवि प्रभाकर

प्रभु ने अशआर और गजलों से समां बांध दिया । कला व सांस्कृतिक मंच आंती के अध्यक्ष गौतम कुमार सरगम की शायर रेजा तसलीम ने मां तेरी दुआ है साथ मैं संवर जाउंगा… और है इसी कड़ी में कवि शशि कुमार आंसू ने माँ ! सबसे अक्सर पूछता हूँ, तेरी शक्लो-सूरत कैसी थी ? का पाठ कर मंच को रूला दिया। माँ का साया नहीं सर पे मेरे मगर, काम आती है

माँ की दुआ दोस्तों से शायर नादाँ रूपौवी ने मां की परिभाषा को विस्तार दिया । जीते जी तो या खुदा पूछा नहीं, मर गए तो सब दवा करने लगे… से गजलगो प्रभाकर प्रभु और काश तुम यहां मेरे पास होते, तो इन पलों की बात ही कुछ और होती. कवयित्री – अभिनेत्री खुशबू कुमारी ने अपने मन की बात की । कवि – अभिनेता सागर इंडिया ने अतरंगी दुनिया की सैर कराते

हुए बेटियों की कर्मशीलता से परिचय कराया । कार्यक्रम अध्यक्ष कवि गौतम कुमार सरगम ने मगही में शासन में फैलल बीमरिया, कैसे पढ़ीं पढ़ईया ना के बहाने व्यवस्था की पोल खोल डाली । अंत में राजेश मंझवेकर ने काव्य गोष्ठी की विशद समीक्षा की और सभी को साहित्यिक और सांस्कृतिक कारवां को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया ।

दस्तक प्रभात प्रतिनिधि

मां तेरी दुआ है साथ मैं संवर जाउंगा… हिन्दूस्तान प्रतिनिधि

■ काव्य मंजरी ने जोड़ा शब्दशिल्पियों को, बिखरे कई रंग

■ कला व सांस्कृतिक मंच आंती के प्रयास से हुआ आयोजन

नवादा, नगर संवाददाता। काव्य मंजरी के कवि सम्मेलन में मां के जिक्र से सबकी आंखें नम हो गयीं तो आज के माहौल पर काव्य प्रहार होने पर सभी संजीदा हो गए। शब्दों से जोश भरा गया और जमाने की दस्तूरबयानी भी हुई। इस ऑनलाइन प्रयास के क्रम में कवि सम्मेलन के संयोजक सह संचालक राष्ट्रीय कवि प्रभाकर प्रभु ने अशआर और गजलों से समां बांध दिया। कला व सांस्कृतिक मंच आंती के अध्यक्ष गौतम कुमार सरगम की अध्यक्षता तथा कलमकार राजेश मंझवेकर की बतौर समीक्षक उपस्थिति में सभी कवियों ने अपनी छाप छोड़ी।

शायर रेजा तसलीम ने मां तेरी दुआ है साथ मैं संवर जाउंगा… और राजेश मंझवेकर ने चली गयी फिर दूसरे धाम, राह दिखा रहा जिसका नाम, वो मां थी… का पाठ कर माहौल को नम कर दिया तो इसी कड़ी में कवि शशि कुमार आंसू ने माँ ! सबसे अक्सर पूछता हूँ, तेरी शक्लो-सूरत कैसी थी? का पाठ कर मंच को रूला दिया। माँ का साया नहीं सर पे मेरे मगर, काम आती है माँ की दुआ दोस्तों… से शायर नादाँ रूपौवी ने मां की परिभाषा को विस्तार दिया। कवयित्री – अभिनेत्री खुशबू कुमारी ने अपने मन की बात की। कवि अभिनेता सागर इंडिया ने अतरंगी दुनिया की सैर कराई। कार्यक्रम अध्यक्ष कवि गौतम कुमार सरगम ने मगही में शासन में फैलल बीमरिया, कैसे पढ़ीं पढ़ईया ना… के बहाने व्यवस्था की पोल खोल डाली।

हिन्दूस्तान प्रतिनिधि


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जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है के तुम हो / अहमद फ़राज़

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है के तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है के तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुश्बू है के झोंका है के पल है
ये धुंध है बादल है के साया है के तुम हो

इस दीद की सआत में कई रन्ग हैं लरज़ाँ
मैं हूँ के कोई और है दुनिया है के तुम हो

देखो ये किसी और की आँखें हैं के मेरी
देखूँ ये किसी और का चेहरा है के तुम हो

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ
हर साँस में मुझको ये लगता है के तुम हो

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल ज़दगाँ का
अब कौन है शीरीं है के लैला है के तुम हो

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है के मैं हूँ
इक मौज में आया हुआ दरिया है के तुम हो

वो वक़्त न आये के दिल-ए-ज़ार भी सोचे
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है के तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता सरों से नहीं मक़्तल
ये रस्म अभी शहर में ज़िन्दा है के तुम हो

ऐ जान-ए-“फ़राज़” इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी
हमको ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है के तुम हो

– अहमद फ़राज़

अंतिम ऊँचाई – कुँवर नारायण

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,
हमारे चारों ओर नहीं।
कितना आसान होता चलते चले जाना
यदि केवल हम चलते होते
बाक़ी सब रुका होता।

मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को
दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में
अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।

शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं
कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,
लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।
हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती
कि वह सब कैसे समाप्त होता है
जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था
हमारे चाहने पर।

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में
जिन्हें तुमने जीता है—

जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे
और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।

स्रोत :

  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 92)
  • रचनाकार : कुँवर नारायण
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2008

Let me see your eyes I want to read you Let me touch your hand I want to feel you

I’ll Leave This World Loving You Walk away leave with my blessingOnce in a while let me hear from you If we never meet againbefore my life is over I’ll leave this world loving you
You can take everything but my memories For they’re good ones and they’ll see me through If we never meet again I’ll love you forever I’ll leave this world loving you
You were mine for a time and I’m thankful Oh,but life will be so lonesome without you If we never meet again this side of Heaven I’ll leave this world loving you
If we never meet again this side of Heaven I’ll leave this world loving you.
I don’t know why you love meBut because of that I know dreams come trueAll I want is love and devotionHonesty and faithfulness from you.

Let me see your eyes I want to read you Let me touch your hand I want to feel you
Every time And every where I just search, Where are you? I dreams always To be with you Oh my sweetheat! Let it true
Let me see your eyes I want to read you Let me touch your hand I want to feel you
When I close eyes It seems you I love you sweetheart Love me too Let me see your eyes

He’s turned his life around. He used to be depressed and miserable. Now he’s miserable and depressed.”
Good advice is something a man gives when he is too old to set a bad example
That’s how I feel without you. Every day that we’re apart Feels like an eternity.
I miss you so much, today I was blue.I watched the time,and kept thinking of you.
If I could catch a rainbow I would do it just for you, and share with you its beauty on the days you’re feeling blue.I’m sending love and kissesall through cyber-spaceif I could be there with youI’d plant one on your face
Holding hands I’d whisper just gimme a little kissthen I’d close my eyes real tighthoping not to miss
But since I can’t be with youI send kisses through e-mailpucker up, and think of meuntil we kiss for real

Today I thought about youand I realized something.I felt like a part of me was missing,and I discovered it was you.

You my sweet love,I miss ever so much.The softness of your lips,And your warm loving touch.
Many uncontrollable circumstances,Have kept us so far apart.Yet every moment I carry you,
You are the love of my life,That you’ll always be.The special times we share,Just mean everything to me.

Thanks for visiting My Blog.
Keep Visiting and give your Valuable Comments.

Regards,
Shashi Kumar

I keep you in my heart

 

Every now, every then,
Everywhere and everywhen;
I think about you always;
How you are and how you’ve been…
Every here, every there Every promise, every prayer;
No matter where we both shall go,
You’re with me everywhere.

I keep you in my heart
And my prayers at all times!

 

Thanks for visiting My Blog.
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Regards,
Shashi Kumar

Still I Rise

You may write me down in history
With your bitter, twisted lies,
You may trod me in the very dirt
But still, like dust, I’ll rise.

Does my sassiness upset you?
Why are you beset with gloom?
’Cause I walk like I’ve got oil wells
Pumping in my living room.

Just like moons and like suns,
With the certainty of tides,
Just like hopes springing high,
Still I’ll rise.

Did you want to see me broken?
Bowed head and lowered eyes?
Shoulders falling down like teardrops,
Weakened by my soulful cries?

Does my haughtiness offend you?
Don’t you take it awful hard
’Cause I laugh like I’ve got gold mines
Diggin’ in my own backyard.

You may shoot me with your words,
You may cut me with your eyes,
You may kill me with your hatefulness,
But still, like air, I’ll rise.

Does my sexiness upset you?
Does it come as a surprise
That I dance like I’ve got diamonds
At the meeting of my thighs?

Out of the huts of history’s shame
I rise
Up from a past that’s rooted in pain
I rise
I’m a black ocean, leaping and wide,
Welling and swelling I bear in the tide.

Leaving behind nights of terror and fear
I rise
Into a daybreak that’s wondrously clear
I rise
Bringing the gifts that my ancestors gave,
I am the dream and the hope of the slave.
I rise
I rise
I rise.

From Book by Maya Angelou

The Essence Of You

You are My Heart, My Hope, My Velentine

 

You are My Heart, My Hope, My Valentine 
You are my heart, my hope, my help,
The passion that is me,
The hole of which I am a part,
My peace, my ecstasy.

You are my future,present, past,
My ship, my sail, my ocean,
the wind that brings me home again,
The home for every motion.

you live within me, yet I am 
Without you all alone.
With you I am full of light;
Without I am stone.

Is this foolish? Yes, Perhaps,
But also it is true.

I think of life as something I 
Can spend with only you.

Ah, my love! Love longs for such
sweet celebrates as this!

loe is burden and joy,
slavery and bliss.

This day of love come love with me,
Come sing with me my song.

Come be my VALENTINE and I 
Will love you my life long, 
Oh! My love, I dote on you.

Written By Shashi kumar ‘Aansoo’

 

Mail ID- aansooshashi@yahoo.co.in

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